Saturday, 15 January 2011

संक्रांति पर विशेष...................................



आपको भी संक्रांति की बहुत बहुत बधाई............................................

भारत में संक्रांति के अलग अलग रूप -
संपूर्ण भारत में मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जलाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिलगुड़चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजकरेवड़ियाँ आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहुएं घर घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों की साग का भी लुत्फ उठाया जाता है।
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है । इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से इलाहाबाद मे हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नही किये जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए है। १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है । माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगास्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके , तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत कोखिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है। इलाहाबाद में गंगायमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है।
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन-मकर संक्रांति को यहां लोगों की अपार भीढ़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-`सारे तीरथ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार।`
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। अत: मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।



दीपक 

1 comment:

विजय मधुर said...

भारतबर्ष त्योहारों का देश है | परन्तु अधिकतर त्योहारों के बारे में हम जानते ही नहीं |

खासकर दूसरे प्रदेशों के | मूल्यवान जानकारी आपसे मिली | धन्यबाद व शुभकामनायें |

http://vijaymadhur.blogspot.com