अयोध्या विवाद का इतिहास-
हिन्दुओं की मान्यता है कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्यमन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मसजिद बना दी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। ६ दिसम्बर सन् १९९२ को यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया।
राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार से है:[१]
- १५२८ में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाया गया था। हिन्दुओं के पौराणिक गर॒थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
- १८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
- १८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
- १९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
- सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
- सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
- ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।
- उसके दस दिन बाद १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
- लिब्रहान आयोग को १६ मार्च १९९३ को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में १७ साल लगाए।
- ३० जून २००९ को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में ७०० पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।
- जांच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया।
- ३१ मार्च २००९ को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने यानी ३० जून तक के लिए बढ़ा गया।
- पिछले १७ सालों में इस रिपोर्ट पर लगभग ८ करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
- आयोग से जुड़े एक सीनियर वकील अनुपम गुप्ता के अनुसार ७०० पन्नों के इस रिपोर्ट में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व भाजपा नेता कल्याण सिंह के नाम का उल्लेख ४०० पन्नों में है, जबकि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली *मनोहर जोशी की चर्चा २०० पन्नों पर की गई है। हालांकि अध्यक्ष से मतभेद के कारण अनुपम गुप्ता इस जांच से अलग हो गए थे। इस मामले में ३९९ बार सुनवाई हुई है।
टिप्पणी - अभी फैसले की तारीख और बढ गयी है.................शायद और बढे .................................और विवाद तो कभी
नहीं ख़त्म होगा | कई ऐसी जगह है जहाँ मंदिर और मस्जिद एक साथ बने हुए है | मेरे विचार में इसका भी यही हल
है कि दोनों एक साथ बना दिया जाये जिससे दोनों पक्ष खुश हो जाये हिन्दू भी और हमारे मुस्लिम भाई बहन भी | आप
सभी भी अपने विचार दें |
धन्यवाद
दीपक
1 comment:
koi bhi pakka saboot nahi hai waka mandir tod kar masjid banayi gayi
Ramchartra manas
ke writer Tulsidas babar ke bad paida hue the unhone bhi kahi ramcharit manas me mandir todkar masjid banane ka zikr nahi kia hai aur jhagda angrezo ke zamane me shuru hua is se pahle koi masjid mandir vivad nahi tha
to kya itne saalo se hindoo bhai soye hue the ye sirf kuch kamino ka chakkar hai aur kuch nahi waha masjid tha aur banega
dabirnews.blogspot.com
Post a Comment