Sunday 17 October, 2010

दशहरे पर विशेष




भगवान श्रीराम की लंकाविजय के पर्व के रूप में विजयादशमी पर्व के प्रति भारतीयों की विशेष आस्था रही है। यह विजय का श्रेष्ठ अवसर है। इस बार दशहरे पर स्वराशिस्थ गुरु एवं शुक्र की वजह से यह मुहूर्त कई दृष्टि से उपयोगी और हितप्रद है। रामायण के अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी लंकापति के परांगमुख होने का दिवस है। उस समय रावण के कार्यो से देवता, ऋषि-मुनि एवं मानव सभी त्रस्त हो गए थे। तब से लेकर आज तक प्रतीकात्मक रूप से दशहरे पर रावण दहन किया जाता है। महाभागवत या देवीपुराण में कहा गया है कि शक्ति संचय के लिए श्रीराम ने अपराजिता या विजया देवी का पूजन किया अत: इसे विजयादशमी कहते हैं। यह पर्व आसुरी शक्तियों के उच्छेदन के रूप में मनाया जाता है। यह नवरात्र में अर्जित शक्ति के प्रदर्शन का उचित अवसर भी है। इससे इहलोक व परलोक में मनवांछित संपदाएं और सफलताएं मिलती हैं ऐहिकं यन्मनोùभीष्टं यच्च पारत्रिके तथा। सम्पदं लभते सर्वा मत्प्रसादात्सुरोत्तम।। 

(महाभागवत 46, 5)
पूर्वकाल में राजाओं ने इस दिन को युद्ध के लिए प्रयाण और आक्रमण के श्रेष्ठ, निष्फल नहीं जाने वाले दिवस के रूप में अपनाया था। इसीलिए ज्योतिर्विदों ने इसे विजयप्रद दिवस के रूप में मान्यता दी है। ऐसे में इस दिवस को पुराणकारों ने भी श्रीराम की लंकापति पर विजय के प्रसंग से जोड़ा। अन्यत्र यह भी कहा गया है कि दशमी पर श्रवण नक्षत्र में श्रीराम ने लंका के लिए प्रयाण किया था। इसी आधार पर श्रवण नक्षत्र में योग-यात्रा और प्रयाण के लिए प्रस्थान करने की परंपरा की शुरुआत हुई।

प्रशस्त मुहूर्त और योग -
ज्योतिषीय परंपराओं में इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना गया है। यह नवीन कार्यारंभ और विद्यारंभ करने का प्रशस्त पर्व है। किसी भी प्रतिस्पर्धा, साक्षात्कार के लिए इस दिन से आरंभ की गई तैयारी व्यक्ति के लिए लाभप्रद होती है। अपने नामानुसार ही यह विजय का मुहूर्त है। इस दिन वाणिज्य-व्यापार, खरीद-फरोख्त, रूप-श्रंगार, रिश्तेदारी आदि भी शुभ होती है। ज्योतिर्निबंध में ‘कालोत्तर’ के संदर्भ से कहा गया है कि आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी पूरे दिन सभी राशि वालों के लिए यात्रा की दृष्टि से शुभ और विजय लक्षण के रूप में ज्ञातव्य है 

आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां सर्वराशिषु। सायंकाले शुभा यात्रा दिवा वा विजयक्षणो। 

यही मत लल्लाचार्य के रत्नकोश का है, जहां यह भी कहा गया है कि इस दिन की संध्या और किंचित तारोदय की बेला में विजय संज्ञक मुहूर्त होता है। यह सर्वकार्य सिद्ध मुहूर्त के रूप में माना जाता है 

ईषत्सन्ध्यामतिक्रान्त: किंचिदुदिद्भन्नतारक:। 
विजयो नाम कालोùयं सर्वकार्यार्थ सिद्धये।।

श्रेष्ठ ज्योतिषीय योग -
वर्ष के उन तीन मुहूर्र्तो में इसकी गणना होती है, जो बहुत प्रभावी और अचूक कहे गए हैं। अन्य मुहूर्त हैं कार्तिक और चैत्र की प्रतिपदा। इस दिन चंद्रमा और अन्य तारादि भले ही बेतरतीब हों, किंतु अपने नाम के अनुसार यह फल देता ही है। यह सीमातिक्रमण या परभूमि पर विजय का दिवस कहा गया है। विश्वरूप निर्णय नामक ग्रंथ में यह कहा है 

आश्विनस्य सिते पक्ष सीमातिक्रमणोत्सव:। विजयनाम मुहूतोùयं कर्तव्यं विजये क्षणो। नवम्यां सहिता कार्या दशम्याश्वयुज: सिता। एकादश्या युता जातु न कार्या जयकांक्षिभि:।। इस दिन संपूर्ण दिन-रात रवियोग रहता है, जो अशुभ योगों का क्षय कर देता है। इस दिन सरस्वती पूजन की परंपरा रही है। राजमार्तण्ड नामक ग्रंथ में भोजराज ने दशमी को देवी पूजनादि के बाद विसर्जन की रस्म की आज्ञा दी है। 

कुल आयुध व वाहन की पूजा का अवसर -
ज्योतिष के मुहूर्त और संहिता ग्रंथों में आया है कि इस दिन व्याक्ति को अपने-अपने कुल के आयुध, कार्योपयोगी यंत्र-साधनों का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। वाहन का पूजन भी करें। वर्तमान में अपने दो, तीन और चारपहिया वाहनों का पूजन-अर्चन किया जा सकता है। नवीन वस्त्राभूषण धारण करने चाहिए। युवाओं और बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्ययन का आरंभ करना चाहिए। यह तैयारी सकारात्मक और पुष्टिप्रद परिणाम देने वाली सिद्ध होगी 
एवं कृते विधाने च तुष्टिदे पुष्टिदे नृणाम्। सर्वपौरजनै: सरध विजयं प्राप्नुयान्नृप:।।

वृक्षों को सम्मान दें व पूजन करें - 
दशहरे को वृक्षपूजन का अवसर भी माना गया है। महाभारत के अनुसार पांडु पुत्रों ने इस दिन शमी या खेजड़ी के पेड़ में अपने सभी शस्त्रास्त्र छुपाए थे। बाद में वे विराट या वैराट जनपद में गुप्त रहे और विजय के दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे। शमी का पूजन बाद में क्षत्रिय समुदाय द्वारा किया जाता रहा। यह पूजन नेतृत्व गुणों व शक्ति के विकास और उन्नति में बहुत प्रशस्त माना जाता है। शमी को बहुत पवित्र और बहुत गुणदायक पेड़ माना गया है। आयुर्वेद में तो इसके गुणधर्म आए ही हैं, धर्मसिंधु व निर्णयसिंधु में शमी के पूजन का वर्णन आया है। अथर्ववेद में भी मरुभूमि में पाए जाने वाले और इच्छित फल देने वाले शमी वृक्ष का गुणगान कई स्थलों पर हुआ है। आधुनिक भूवैज्ञानिकों के अध्ययन से पता चला है कि यह वृक्ष भूमिगत हलचलों की भविष्यवाणी की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
इसलिए इसे ‘निमित्त द्रुम’ भी माना गया है। राजस्थान में इस पेड़ के नाम पर गांव है, जहां शमी की रक्षा के लिए अमृतादेवी द्वारा सैकड़ों विश्नोई लोगों के साथ बलिदान देने का प्रसंग जुड़ा है। इसी प्रकार इस वृक्ष के आधार पर जांगल मरुभूमि में भूमिगत जलस्रोत को तलाशा जाता रहा है, दकार्गल जैसे विषय ग्रंथों में इस पर विशेष चर्चा की गई है। दशहरे पर शमी के पूजन के मूल में इस पेड़ की रक्षा का भाव जुड़ा हुआ है। यदि कहीं शमी नहीं हो तो अश्मंतक पेड़ की पूजा भी की जा सकती है। स्कंदपुराण के अनुसार इस अवसर पर मंत्र पढ़ा जाना चाहिए : शमी शमयते पापं शमी शत्रु विनाशिनी। धरि˜यजरुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।। करिष्यमाणां या यात्रा यथाकालं सुखं मया। तत्र निर्विघ्नकर्त् त्वं भव श्रीरामपूजिते।।


  
मेरी और से आप सभी लोगो को दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनाएं........................................................


बोलो प्रभु श्री रामचंद्र जी की जय..............................................................................................




दीपक  

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